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ज़िंदगी गैरज़रुरी सही नागवार नहीं है

कुछ प्यार सा तो है मगर प्यार नहीं है


इंकार तो किया न उसने कभी मुझसे

ज़ाहिर सा मगर कोई, इक़रार नहीं है


फिर काम पे जाना सुब्ह से शाम तक

फुर्सत कहाँ, याद करुं ,इतवार नहीं है


अबके मौसम में तब्दीलियां कुछ रहे

आई बहार, घर मगर गुलज़ार नहीं है


बेपरवाह दिल का तो आलम न पूछें

सौ दर्द है, कमबख़्त शोगवार नहीं है


मेरी वफ़ा पे शायद यक़ीं नहीं उनको

फुरक़त ए ग़म से,वो बेक़रार नहीं है


दिल से लाज़वाब नहीं, चीज़ है कोई

इनसे ख़ूबसूरत,मेरा अशआर नहीं है


महबूब सा कोई गुलफ़ाम नहीं होता

मुझसा क्या फ़क़ीर,शहरयार नहीं है

(विनोद प्रसाद)

शोगवार:पीड़ाग्रस्त

फ़ुरकत ए गम:विछोह की पीड़ा

गुलफ़ाम:फूल सा खूबसूरत

शहरयार:राजा

 
 
 

दौरे ग़म ए दहर में,मुस्कुराना मजाल है

वो शख़्स अभी ज़िंदा है क्या कमाल है


शाम से क़ब्ल है क़त्ल हुआ सूरज का

मैं देख रहा हूँ आस्मां भी लाल लाल है


मरने की अब सूरत नज़र नहीं आती है

और ज़िन्दगी भी ऐसी जीना मोहाल है


सब्र कुछ और,भूख और फ़ाके़ न होंगें

मज़हबी मसाइल अहम अबके साल है


सच कहने की कोशिश में मारा गया है

सब जानते हैं लेकिन न कोई मलाल है


हाथों से लहू धोके फिर आया क़ातिल

अब ये भी सियासत,क्या बेमिसाल है


कुछ तो ऐसा हो माहौल मुताबिक़ रहे

हर बात पे ज़िरह हर बात पे बवाल है

(विनोद प्रसाद)

ग़म ए दहर :: संसार का दुख‌::क़ब्ल:पहले

 
 
 

करम अपनों का था,वो काम आया

बेज़ुबां पत्थर के सर इल्ज़ाम आया


हो रहे थे रुखसत ग़मे जहां से हम

डाकिया लेके था जब पैग़ाम आया


अब तो रात भर नींद आने की नहीं

ख़्याल उनका जब सरे शाम आया


दिनभर की आवारगी का अंज़ाम है

न मैक़दे तलक पहुंचे न ज़ाम आया


आया था शहर को अलविदा कहने

न दुआ कोई ,न कोई सलाम आयां


आज ख़ुद को भी भूल चुके हैं हम

तब कहीं जाके कुछ आराम आया


उनकी बेरुख़ी से, इश्क़ हो गया है

ख़िराजे अक़ीदत में ,है नाम आया

(विनोद प्रसाद)

खिराजे अक़ीदत: श्रद्धांजलि, नज़राना

 
 
 
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