- Vinode Prasad
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इक तस्वीर रह गई हैं ख़्वाबों में सजाने केलिए
अब याद भी वो आए हैं, तो दिल दुखाने केलिए
सज़ायाफ्ता हूँ मैं ख़ुद,ब-क़ैद-ए-हयात हूँ अब
हर्फ़ ए बयां हूँ बेज़ुबानी की सज़ा पाने केलिए
कौन है जो अपने शहर में रह गया मेरा अपना
क्योंआ गया यहाँ दिल के टुकड़े उठाने केलिए
एहसास ए मुहब्बत तो है, हरेक दर्द का बाइस
इक रोशनी सा होता,अंधेरे में डूब जाने केलिए
ज़ाहिर सा रहा था, दुनियादारी की तिजारत में
एक दर्द ही बचा था इस दिल में छुपाने केलिए
आँसू का उबल आना, आँखों में तो जायज़ है
वैसे ये मोती है,अपने दामन में सजाने केलिए
जो कुछ है दिल में,वो सभी को सुना के जाऊँ
कल कौन आएगा यहाँ ये नज़्म सुनाने केलिए
(विनोद प्रसाद)
सज़ायाफ़्ता :दंड पाया हुआ
ब-क़ैद-ए-हयात:जीवन पाश में आबद्ध
बाइस:कारण,वज़ह
तिजारत:व्यापार