top of page
Search

इक तस्वीर रह गई हैं ख़्वाबों में सजाने केलिए

अब याद भी वो आए हैं, तो दिल दुखाने केलिए


सज़ायाफ्ता हूँ मैं ख़ुद,ब-क़ैद-ए-हयात हूँ अब

हर्फ़ ए बयां हूँ बेज़ुबानी की सज़ा पाने केलिए


कौन है जो अपने शहर में रह गया मेरा अपना

क्योंआ गया यहाँ दिल के टुकड़े उठाने केलिए


एहसास ए मुहब्बत तो है, हरेक दर्द का बाइस

इक रोशनी सा होता,अंधेरे में डूब जाने केलिए


ज़ाहिर सा रहा था, दुनियादारी की तिजारत में

एक दर्द ही बचा था इस दिल में छुपाने केलिए


आँसू का उबल आना, आँखों में तो जायज़ है

वैसे ये मोती है,अपने दामन में सजाने केलिए


जो कुछ है दिल में,वो सभी को सुना के जाऊँ

कल कौन आएगा यहाँ ये नज़्म सुनाने केलिए

(विनोद प्रसाद)

सज़ायाफ़्ता :दंड पाया हुआ

ब-क़ैद-ए-हयात:जीवन पाश में आबद्ध

बाइस:कारण,वज़ह

तिजारत:व्यापार

 
 
 

सुकूं है ग़मे यार दस्तयाब तो है

वो नहीं तो, उनका ख़्वाब तो है


गुज़र रही है ज़िन्दगी बस यूँ ही

तख़य्युल है कि बेहिसाब तो है


मेरी पहचान चाहे कुछ भी नहीं

अपनी चाहत का इंतख़ाब तो है


गर्दिशे दौर की ये दौलत है मेरी

ग़मे फ़ु़रक़त भी लाज़वाब तो है


ये तसल्ली बहुत है जीने केलिए

कायम अभी रस्मे आदाब तो है


मैं रहूँ,न रहूँ मौसमे ख़िजाँ जाने

चमन उनका मगर शादाब तो है


भूलकर भी नहीं भूल पाए जिसे

वो शख़्स आज भी नायाब तो है

(विनोद प्रसाद)

दस्तयाब: प्राप्त, उपलब्ध

तख़य्युल: सोचना ख़्याल करना

 
 
 

ज़िंदगी गैरज़रुरी सही नागवार नहीं है

कुछ प्यार सा तो है मगर प्यार नहीं है


इंकार तो किया न उसने कभी मुझसे

ज़ाहिर सा मगर कोई, इक़रार नहीं है


फिर काम पे जाना सुब्ह से शाम तक

फुर्सत कहाँ, याद करुं ,इतवार नहीं है


अबके मौसम में तब्दीलियां कुछ रहे

आई बहार, घर मगर गुलज़ार नहीं है


बेपरवाह दिल का तो आलम न पूछें

सौ दर्द है, कमबख़्त शोगवार नहीं है


मेरी वफ़ा पे शायद यक़ीं नहीं उनको

फुरक़त ए ग़म से,वो बेक़रार नहीं है


दिल से लाज़वाब नहीं, चीज़ है कोई

इनसे ख़ूबसूरत,मेरा अशआर नहीं है


महबूब सा कोई गुलफ़ाम नहीं होता

मुझसा क्या फ़क़ीर,शहरयार नहीं है

(विनोद प्रसाद)

शोगवार:पीड़ाग्रस्त

फ़ुरकत ए गम:विछोह की पीड़ा

गुलफ़ाम:फूल सा खूबसूरत

शहरयार:राजा

 
 
 
bottom of page