- Vinode Prasad
- 2 days ago
- 1 min read
करम अपनों का था,वो काम आया
बेज़ुबां पत्थर के सर इल्ज़ाम आया
हो रहे थे रुखसत ग़मे जहां से हम
डाकिया लेके था जब पैग़ाम आया
अब तो रात भर नींद आने की नहीं
ख़्याल उनका जब सरे शाम आया
दिनभर की आवारगी का अंज़ाम है
न मैक़दे तलक पहुंचे न ज़ाम आया
आया था शहर को अलविदा कहने
न दुआ कोई ,न कोई सलाम आयां
आज ख़ुद को भी भूल चुके हैं हम
तब कहीं जाके कुछ आराम आया
उनकी बेरुख़ी से, इश्क़ हो गया है
ख़िराजे अक़ीदत में ,है नाम आया
(विनोद प्रसाद)
खिराजे अक़ीदत: श्रद्धांजलि, नज़राना