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मूक नैनों के अश्रु के अनुवाद अभी बाकी हैं कितने ही इस मन के‌संवाद अभी बाकी हैं•••

मूक नैनों के अश्रु केअनुवाद अभी बांकी हैं

कितने ही इस मन के,संवाद अभी बांकी हैं


जाने कितने क्षोभ दबे अंतर्मन की अग्नि में

कितनी कुंठाओं के प्रतिवाद अभी बांकी हैं


नहीं स्मरण में शेष कहीं, है अपनी पहचान

कितने ही प्रतिघात की याद अभी बांकी हैं


किसको बतलाए जाएँ क्या क्या बीत रही

उपर घाव भरे भीतर मवाद अभी बांकी हैं


अभी तो चर्चे तक में आई न अपनी पीड़ा

संभवत जीवन की, मियाद अभी बांकी हैं


खंडहर सा ये मन है पथ में बिखरे बिखरे

आशाओं के किन्तु प्रासाद अभी बांकी हैं


अबतक समझ न पाया विषअमृत में भेद

जग के कड़वेपन के स्वाद अभी बांकी हैं


रात रात भर जगी रही है आकुल प्रतिक्षा

राम तेरे आगे तो फरियाद अभी बांकी है

(विनोद प्रसाद)

 
 
 

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