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स्वयं इतना कभी अभिमान न हो आँसू का कोई भी अपमान न हो •••

स्वयं इतना कभी अभिमान न हो

आँसू का कोई भी अपमान न हो


मैं नहीं रहा  कभी श्राप बन कर

तुम भी वैसे, कोई वरदान न हो


किस काम के वो रिश्ते जहाँ पर

एक दूजे के वास्ते सम्मान न हो


सोच लेना गुनाह करने से पहले

जगह बता, जहाँ भगवान न हो


सच तो केवल वही सच होता है

कोई संशय कोई अनुमान न हो


वो दर्द ही क्या जो बेआसरा रहे,

दिल क्या जिसके अरमान न हो


हरवक़्त सन्नाटे सुनाई देते जहाँ

घर किसीका ऐसा विरान न हो

(विनोद प्रसाद)

 
 
 

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