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सुकूं है ग़मे यार दस्तयाब तो है वो नहीं तो,उनका ख़्वाब तो है •••

  • Writer:  Vinode Prasad
    Vinode Prasad
  • 35 minutes ago
  • 1 min read

सुकूं है ग़मे यार दस्तयाब तो है

वो नहीं तो, उनका ख़्वाब तो है


गुज़र रही है ज़िन्दगी बस यूँ ही

तख़य्युल है कि बेहिसाब तो है


मेरी पहचान चाहे कुछ भी नहीं

अपनी चाहत का इंतख़ाब तो है


गर्दिशे दौर की ये दौलत है मेरी

ग़मे फ़ु़रक़त भी लाज़वाब तो है


ये तसल्ली बहुत है जीने केलिए

कायम अभी रस्मे आदाब तो है


मैं रहूँ,न रहूँ मौसमे ख़िजाँ जाने

चमन उनका मगर शादाब तो है


भूलकर भी नहीं भूल पाए जिसे

वो शख़्स आज भी नायाब तो है

(विनोद प्रसाद)

दस्तयाब: प्राप्त, उपलब्ध

तख़य्युल: सोचना ख़्याल करना

 
 
 

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